लेख-निबंध >> सर्जना पथ के सहयात्री सर्जना पथ के सहयात्रीनिर्मल वर्मा
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निर्मल वर्मा निश्चय ही हिन्दी के उन रचनाकारों में आते हैं जिन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से अपना आत्मीय, जादुई और निराला संसार रचा है। उन्होंने समय-समय पर अपने प्रिय लेखकों-कलाकारों पर लिखा है। इन लेखों में उन्होंने ‘आलोचन की लगी-बँधी खूँटी से अपने को छुड़ाकर आत्मीय प्रतिक्रियाओं के प्रवाह में स्वयं को बहने दिया है। भाषा के नैतिक और आध्यात्मिक आयामों को विकसित करती उनकी ये आत्मीय और पारदर्शी गद्य रचनाएँ मूर्धन्य व्यक्तियों के आलोक और अँधेरे को जिस सजीवता के साथ प्रकट करती हैं वह दुर्लभ साधना और अनिवार्य जिज्ञासा से ही अर्जित की जा सकती हैं।
इस पुस्तक में देश के लगभग तमाम महत्त्वपूर्ण रचनाकारों – प्रेमचन्द, महादेवी वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, रेणु, मुक्तिबोध, भीष्म साहनी, धर्मवीर भारती, मलयज और चित्रकारों-कलाकारों- हुसेन, रामकुमार, स्वामीनाथन पर तो आलेख हैं ही बोर्ख़ेज, नायपाल, नाबोकोव, राब्बग्रिये और लैक्सनेस पर भी बेहद संजीदगी और तरल संवेदना से लैस रचनाएँ संकलित हैं। निश्चय ही पाठकों को यह पुस्तक निर्मलजी की अन्य पुस्तकों की तरह बेहद पठनीय और मननीय लगेगी।
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